साथियों नमस्कार अत्यंत दुखद विषय के साथ सरकार द्वारा जनित प्रकृति के दोहन के विकास के चलते हिमालय क्षेत्र में बादल फटने की घटनाएं लगातार बढ़ रही है जिसमें कल उत्तरकाशी के धारली में बादल फटने के कारण मानव ,मवेशीयो के हताहत होने की सही सूचना संचालित रेस्क्यू के समाप्त होने के उपरांत ही स्पष्ट हो पाएगी। स्पष्ट प्रमाण और दावे के साथ कहा जा सकता है कि पहाड़ पर बस्ती वाले पहाड़ियों के पूर्वज निश्चित रूप से बहुत बड़े भूगर्भ शास्त्री रहे होंगे उनके द्वारा स्थापित गांव में कभी भी ना बादल फटा ना पहाड़ गिरने की घटना हुई केवल ऐसे गांव में बादल फटे पत्थर गिरे पहाड़ टूटे जिन्होंने सुविधा का ध्यान रखते हुए पुराने बेस बेस गांव से अलग अपना बसेरा बसाया चाहे वह बसेरा खुद पहाड़ के लोगों ने बसाया अथवा पहाड़ों पर भौतिकवाद के विकास के कारण पृथक रूप से प्रकृति को पंचतारा संस्कृत में बदलने की सोच विकसित की गई वहीं पर ऐसी घटनाएं सामने आई हैं चाहे कहीं की भी घटना का वर्णन कर ले जहां पर बादल फटे हो अथवा पहाड़ टूटे हूं वह पूर्वजों के द्वारा बसाई हुई गांव नहीं है निश्चित रूप से पहाड़ के आदि संख्यक आबादी नदियों के किनारे पर निवास करती है और जंगलों को संस्कृत करने की सामाजिक संरचना की जो भावना थी उसी के कारण हमारी संस्कृति वनों से विकसित हुई है और विश्व में हमारी ही नहीं कई वैश्विक देश की संस्कृति भी वनों के द्वारा विकसित हुई है बैंड समृद्ध देश चाहे वह इथोपिया हो ब्राज़ील हो नीदरलैंड हो ऑस्ट्रेलिया हो सभी का कर्मिक विकास वनों से हुआ है बन हमारी संस्कृति और पशुधन की भरण पोषण की मुख्य संरक्षण साल रही है। हिमालय क्षेत्र एक शांत प्रिया क्षेत्र है एक दौर में बाबा बद्री विशाल के यहां तो शंख और घंटे घड़ियाल बजाने की भी अनुमति नहीं थी लेकिन आज पंचतारा संस्कृति के चलते तीर्थ स्थलों तक यातायात के शुभम साधन बन गए हैं हेली सेवा उपलब्ध हो गई है क्योंकि विकास बहुत तेजी से हिमालय क्षेत्र को निगलने के लिए उतारू है। आज के व्यावसायिक वैज्ञानिक मनुष्य द्वारा शांत हिमालय क्षेत्र में पंचतारा संस्कृति के विकास के लिए जिस प्रकार से विकास नाम का अपने व्यावसायिक विकास के पेजामी पहनकर प्रकृति पद सुंदरता को पंचतारा भौतिक सुविधा उपलब्ध कराने के लिए जनतंत्र की सरकार की पीठ पर सवार होकर जनतंत्र को कुचल ते हुए हिमालय क्षेत्र के परिवेश उसके पारिस्थितिक तंत्र उसकी संस्कृति इसकी सभ्यता को आधुनिक विकास के नाम पर विनष्ट करने के लिए पश्चिम सभ्यता के फेके हुए लंगोट को पहनकर सरकार से हिमालय क्षेत्र उसकी समृद्ध पारिस्थितिक तंत्र पर कब्जा करने के लिए जिस प्रकार की रणनीति बनाकर उत्तराखंड हिमालय क्षेत्र को कंक्रीट के स्ट्रक्चर में खड़ा करते हुए हिमालय क्षेत्र को रेगिस्तान बनाने की जो संयोजित षड्यंत्र रचा गया है उससे हिमालय को अत्यधिक खतरा हो गया है हाल ही के वर्षों में अभी तक 42 ऐसी घटनाएं घट चुकी हैं जो उत्तराखंड की हिमालय संस्कृति और उसकी सभ्यता को निगल रही है। वर्ष 2013 में बाबा केदार के क्षेत्र में बड़ी आपदा आई थी उसमें अभी तक कितने लोग इंद्रपुरी पहुंच गए उनका सही आंकड़ा सरकार आज तक बताने में सफल नहीं रही है कई वर्षों तक जंगलों में मानव कंकाल मिलते रहे। कुछ स्थानीय लोगों की माने तो उसे आपदा में 30000 से अधिक तीर्थ श्रद्धालु लापता हुए सरकार का आंकड़ा 7000 के पार नहीं कर सका विश्वास करना चाहिए हमें सरकार के आंकड़ों पर विश्वास किया गया पूरे विश्व में विश्वास किया लेकिन यह विश्व की ऐसी तृषादी है जिसे इतिहास कभी भूलने नहीं देगा। चिंता की बात तो यह है कि जब लगातार हिमालय क्षेत्र में आपदाएं सरकार द्वारा आमंत्रित की गई हैं तो निर्दोष लोगों की जान माल की रक्षा करने के लिए ठोस उपाय क्यों नहीं किया जा रहे हैं क्या उसके पीछे के यह कारण है कि हिमालय क्षेत्र को रेगिस्तान बनाने के लिए आतुर कुछ भु- व्यावसायिक माफिया सरकार को खरीद देते हैं ब्यूरोक्रेट्स को खरीद देते हैं ताकि उनका पंचतारा विकास शांति हिमालय वीदियो में व्यवसायिक ता को उत्पन्न करें और उनकी जेबे भी र्गम होती रहे अगर आपदा आई भी तो वहां पर तैनात उनके कर्मचारी हताहत होंगे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वह देहरादून से संचालित होती है और ब्यूरोक्रेट्स भी कभी जनता के होते ही नहीं है आज भी उत्तराखंड के कई गांव मौलिक अधिकारों में समृद्ध मानव अधिकारों से प्रदत्त सुविधाओं से भी वंचित है इसमें क्या वहां पर रहने वाले लोगों का दोष है या उन लोगों का दोष है जो जनता से वोट लेकर के सरकार चलाते हैं और फिर जनता के ही विरुद्ध कानून बनाते हैं। निश्चित रूप से यह सभी आपदाएं प्रकृति प्रद लगते हैं लेकिन जब आप सरकार के एजेंट और सिस्टम में बैठे हुए ब्यूरोक्रेट्स का मानसिक रूप से अध्ययन करेंगे तो स्पष्ट होगा कि यह लोग केवल और केवल संपूर्ण रूप से व्यवसाय कर रहे हैं इस राज्य के संसाधनों को विनाश कर रहे हैं उन्हें भू माफिया और खनन माफिया को सौंप रहे हैं राज्य में प्रचुर मात्रा में दोहन कर कर मुनाफाखोर मुनाफा खा रहे हैं और आपदाओं में उत्तराखंड की निर्दोष जनता जीवन गवा रही है। सरकार ने तो अपना एकमात्र एजेंडा बना दिया है की आपदा घटित होने दो और वहां पर हम सरकारी एजेंसी के साथ कैंप करने लग जाती है लगता है कि यही हमारे सच्चे हितोशी हैं जबकि ऐसा कतई नहीं है यह लोग हवाई सर्वेक्षण भी जमीनों की तलाश के लिए करते हैं कि अगला जंगल किस माफिया को बेचा जाए उन्हें आज पैसा चाहिए वह पैसा निर्दोष जनता की जीवन को दाव पर लगाकर आए या प्रकृति को तबाह करके आए वह आना चाहिए। सरकार की अगर मानते हैं तो वर्ष 2011 में राज्य में संचालित प्रमुख चुंबकीय शक्ति मतों के लिए एक सुरक्षा समिति बनाई गई थी जिसमें काफी नियम थे वहां पर कोई हादसा होता है तो अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की गई थी लेकिन वह आज तक प्रवान नहीं चढ़ा उसके बाद वर्ष 2013 की बाबा केदार धाम में आई आपदा के बाद भी जिम्मेदार अधिकारी को दंड नहीं दिया गया इसी प्रकार से आपदाएं आती रहेंगे निर्दोष लोग हादसो के शिकार हो जाएंगे सरकार रेस्वयू चलाकर मुआवजा बांट देगी और सिस्टम फिर दूसरे हादसे का इंतजार करेगा निश्चित रूप से या हादसा प्रकृति प्रद नहीं है सरकार द्वारा आमंत्रित आपदा है इसके लिए सरकार चाहे वह कांग्रेस रही हो अथवा वर्तमान की भाजपा सरकार दोनों ही जिम्मेदार हैं इसीलिए जागरूक राज्यों में शायद स्थानीय दालों की सरकार कई राज्यों में संचालित है केंद्रीय कृत दलों की सरकार राज्यों के मूल अवधारणा के विरुद्ध विकास करती है इस विकास को हमने देखा है ऑल वेदर रोड से इससे नदियों मी पहाड़ काटकर कितना सीट जमा किया गया कितने कितने व्रछो के प्रजातियां समाप्त की गई जो पारिस्थितिक तंत्र के लिए बहुत आवश्यक थी न तो यह परियोजना पूर्ण हुई और इससे क्षति अपार हो गई कहावत है तब गई सड़क मेरे गांव जब मेरे गांव के लोग शहर चले गए। उत्तराखंड के कई गांव आज भी संपूर्ण रूप से खाली हो गए पलायन के लिए भी सरकार के पास कोई नीति है ना विधि है और न ही व्यवस्था है। उत्तराखंड के सम्मानित जनता को ही अब जागृत होना पड़ेगा 25 साल के उत्तराखंड के हो गए हैं अगर इन 25 सालों में भी हमने अपने राजनीतिक सत्ता दलों की नीति नहीं समझी तो फिर समझना भी मुश्किल है इसी तरह के हादसे पर हादसे होते जाएंगे हवाई सर्वेक्षण होगा और फिर अधिकारी अगले किसी ठेकेदार को हमारे जंगलों को सौंप देंगे किसी को हाइड्रो पावर के लिए किसी को पंचतारा संस्कृति के विकास के लिए यह कभी नहीं समझ सकते कि हिमालय चाहता क्या है हिमालय के साथ छेड़खानी होना ज्यादा समय तक बर्दाश्त नहीं होगा उसकी परिणिति इसी प्रकार से होगी कि एक दिन उत्तराखंड प्राकृतिक आपदाओं में समाप्त हो जाएगा और जो हिस्सा बचेगा वह फिर हिमालय के संसाधनों को लूटने के लिए सरकार की पीठ पर सवार होकर के हिमालय का बंटवारा करेगा हिमालय का ठेका ले लेगा। साथियों यह हिमालय वहीं क्षेत्र है जहां पर वेदव्यास जी ने बाबा बद्री धाम की व्यास गुफा में श्रीमद् भागवत महापुराण की रचना की महाकवि कालिदास द्वारा काली मठ में अभिज्ञान शाकुंतलम् जैसे ग्रंथ का रचना की उसे क्षेत्र में इस प्रकार की आपदाएं आना निश्चित रूप से सरकार का फेलियर है जिसको हमें जल्दी से जल्दी समझना होगा ताकि हम खुद जिम्मेदारी लें हिमालय को बचाने के लिए सरकार के भरोसे हम हिमालय को नहीं छोड़ सकते। आपदा में हताहत हुए दिवंगत पुण्य आत्माओं को शत-शत नमन शत-शत नमन जय हिंद जय भारत जय बद्री जय केदार ।