ये आफत लोगो द्वारा खुद आमंत्रित की गई है देवी देवताओं को लगातार नाराज करना उनकी अनदेखी करना पौराणिक प्राचीन देवभूमि के साथ खिलवाड़ करना लोगो को अब भारी पड़ रहा है नेता तो भोले भाले लोगों को गुमराह कर चुनाव जीत कर राजधानी में जा बसे करोड़ों की संपति जोड़ ली फिर पीड़ित लोगों की सुनेगा कौन कैसे होगी इस महाविनाश की भरपाई जो बे गुनाह थे उन्हें आपदा खा गई होटल रिजॉर्ट बनाने के चक्कर में भूल गए थे लोग की ये उत्तराखंड देव भूमि है देवताओं की तपस्या स्थली है इतनी बड़ी तबाही होने के बाद भी सरकार आश्वासन ही दे रही है और अगर ऐसा हो होता रहा तो उत्तराखंड के अस्तित्व का क्या होगा कैसे बचेंगे पहाड़ और पहाड़ पर रहने वाले लोग पत्रकार आते है अपनी स्टोरी बनाकर चले जाते है उन्हें अपनी स्टोरी पर हजारों vivrsh चाहिए वो भी सिंहासन के गिरेबान में हाथ डाल कर सवाल नहीं पूछ सकते क्योंकि लुट में वो भी बराबर के हिस्से दार है फिर कोन उठाएगा उत्तराखंड के लोगों की आवाज कोन सुनेगा रोते हुए लोगो की कोन पूछेगा इनके आंसू