बिलकुल। साधू संतों की नगरी हरिद्वार व्यापारियों की नगरी अखाड़े ट्रस्ट आश्रम बिक रहें हैं , शम्भू आश्रम – भूपत वाल , निष्काम सेवा मिशन भूपतवाला , निरजंनी अखाड़े की ट्रस्ट माँ मनसा देवी मंदिर की भूमि पर मनीटावर कनखल , कार्तिकेय कुंज कनखल , मारुति वाटिका जगजीतपुर कनखल लक्सर रोड़ हरिद्वार मे – बड़े बड़े फ्लैट बनाकर भू माफिया साधू सन्तो की ट्रस्ट की भूमि ठिकाने लगाने में लगे है। हरिद्धार प्रशासन . हरिद्धार का पत्रकार संगठन एक संगठित गिरोह के रूप मे साधू सन्तो का महिमा मण्डल करने मे लगा है – मैंने हरिद्धार प्रशासन से भी शिकायतों का पुलन्द थमाया जिला अधिकारी द्वारा अब तक कोई कार्यवाही नही की हरिद्धार विकास प्राधिकरण को बहुत पत्र लिख कर शिकायत दी , मारुति वाटिका पर चल रहा अवेध फ्लैटो का निर्माण नही रोका गया – RE RA द्वारा भी अवैध निर्माण रोकने का नोटिस भेजा गया परन्तु क्या कारण है किया पत्रकार मेरी बात समाचार मे नही में जो घटनाएं सामने आ रही हैं, वे न केवल शर्मनाक हैं, बल्कि आने वाले समय के लिए गंभीर चेतावनी भी हैं। आपके अनुरोध के अनुसार नीचे एक कड़ा, स्पष्ट और निर्भीक लेख प्रस्तुत है, जो हर उस व्यक्ति के लिए आंखें खोलने वाला हो सकता है जो धर्म, संत परंपरा और समाज के मूल्यों के लिए चिंता करता है।
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हरिद्वार में धर्म की हत्या : संतों की नगरी पर माफियाओं और अधिकारियों का कब्ज़ा
हरिद्वार – एक ऐसी पवित्र भूमि, जहाँ गंगा बहती है, जहाँ संतों का वास होता है, जहाँ साधना की परंपराएं आज भी जीवित हैं। लेकिन आज वही भूमि सत्ता, भ्रष्टाचार और भू-माफियाओं की साज़िशों का अखाड़ा बन चुकी है। यह सिर्फ जमीन पर कब्ज़ा नहीं है – यह धर्म पर हमला है, यह आस्था की हत्या है।
भू-माफिया + अफसर + सत्ता – एक विध्वंसकारी त्रिकोण – यह बात क्यों हम नही लिखते की साधू सन्त का चोला जमीनो की खरीद फरोक्त में लगा है – आश्रमों को बैचे जाने मे भूमिका सन्तो की भी है , सन्त का चौला पहन कर भू माफियायों को संरक्षण भी तो साधू सन्त ही दे रहें है फिर कहते है . सोची समझी साजिश है , जब साधू सन्त व्यापार करेंगे तो सरकारी लोग क्यो चूप रहेंगे आम जनता क्यों चूप रहेगी !
पिछले कुछ महीनों में जिस प्रकार से संतों के आश्रमों पर जबरन कब्ज़ा किया गया है, वह एक सोची-समझी साजिश का संकेत देता है। भू-माफिया खुलकर संतों की जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं और प्रशासन या तो चुप है या मूक समर्थन दे रहा है।
जो पुलिस आम नागरिकों पर छोटी-छोटी बातों में डंडा चला देती है, वही पुलिस यहां माफियाओं के सामने खामोश क्यों है ?
क्या यह डर है? दबाव है ? या फिर साजिश में भागीदारी ?
पुलिस की भूमिका संदेह के घेरे में
हरिद्वार पुलिस की भूमिका अब कठघरे में है। कानून के रक्षक अगर भू-माफियाओं के संरक्षणकर्ता बन जाएं, तो न्याय की उम्मीद करना मूर्खता है।
आश्रमों में घुसकर संपत्तियों पर कब्जा करवाना
संतों की रिपोर्ट्स पर कोई कार्रवाई न करना
माफियाओं को खुली छूट देना
क्या यह सब संयोग है ? या फिर किसी ऊपर के आदेश का पालन ?
ध्यान देने वाली बात यह है कि जब संत प्रेस कॉन्फ्रेंस कर-कर के थक चुके हैं, और मीडिया भी इस मुद्दे को उठाने लगा है, तब भी कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
हरिद्वार को संतविहीन करने की योजना?
यह एक बड़ा प्रश्न बन चुका है – क्या यह सुनियोजित प्रयास है हरिद्वार को संतविहीन करने का ?
पहले जंगलों से संतों को हटाया गया, ‘ फॉरेस्ट कानूनों के नाम पर
फिर उन्हें सीमित आश्रमों में समेट दिया गया
अब उन्हीं आश्रमों पर भू-माफियाओं का हमला शुरू हो गया
क्या अगला कदम हरिद्वार से संतों को पूरी तरह हटाना है ?
खतरनाक संदेश – अपने ही लोगों से खतरा
सबसे दुखद पहलू यह है कि यह हमला किसी बाहरी ताकत का नहीं, अपने ही समाज के लोगों का है – कुछ नेता, कुछ अधिकारी, कुछ तथा कथित ठेकेदार जो धर्म की चादर ओढ़े हुए हैं लेकिन भीतर से सत्ता और पैसा ही उनके इष्ट हैं।
यह भीतर की दीमक अधिक खतरनाक है। बाहर से आने वाला हमला दिखता है, पर जब घर के लोग ही घर जलाएं तो पहचानना कठिन हो जाता है।
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निष्कर्ष : अब नहीं जागे तो बहुत देर हो जाएगी
हरिद्वार केवल एक शहर नहीं, यह हिंदू समाज की आत्मा है। संत इस आत्मा के संरक्षक हैं। अगर वे ही असुरक्षित हो जाएं, तो फिर किसका धर्म बचेगा? कौन करेगा मार्गदर्शन? कौन बनाएगा समाज को संयमित और संतुलित?
आज यह केवल संतों की लड़ाई नहीं – यह हर उस व्यक्ति की लड़ाई है जो धर्म, सत्य और न्याय में विश्वास रखता है।
अब वक्त आ गया है कि समाज एकजुट होकर आवाज़ उठाए, प्रशासन से जवाब मांगे और माफियाओं को बेनकाब करे।
अगर आज चुप रहे, तो कल सिर्फ हरिद्वार नहीं बचेगा, धर्म भी डगमगा जाएगा।
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“धर्म नगरी को बचाना है, तो माफिया-प्रशासन के गठजोड़ को तोड़ना होगा।
वरना कल हम अपनी अगली पीढ़ी को सिर्फ कहानियाँ ही सुना पाएंगे – संतों की नगरी हरिद्वार की।”
पत्रकारों की ऐसे मामलों में भूमिका भी सवालों के घेरे में है दरबारी हो गए है पत्रकार का पेशा शर्मनाक सा हो गया है पक्षपात और झूठी खबरे चलाने का हुनर या साधू संतो की चाटुकारिता करना पत्रकारिता का काम रह गया है या जहाँ से जैब गरम होती है – मेरे साथ पत्रकारों ने HRDA के अधिकारियों की चम्मचा गिरि कर झूठा गैंगस्टर का मुकदमा लिखवाया था और मेरी फोटो अखवार पर लगाई थी – कानून कहता है बिना साक्ष्य के फोटो नही लगा सकते है मिडिया सच मे दलाली का काम कर रहा है । । मेरे पर बिती है सच लिख रहा हूं। नवीन अग्रवाल