“प्रेमानंद जी केवल भजन से लोकप्रिय है, विद्वान नहीं..श्री रामभद्राचार्य जी”
आपके इस 👆 वक्तव्य पर एक सवाल…?

आत्मश्लाघा से बुरी तरह पीड़ित जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी से एक निवेदन है कि निःसंदेह आप विद्वान हो सकते हैं, लेकिन किसी संत का अपमान करने का अधिकार किसने दे दिया आपको ? ब्राह्मण होते हुए ब्राह्मणों में विभेद कर किसी को ऊँच ल, किसी को नीच बताना, किसी सर्वमान्य संत को अपमानित करना, राजनीतिक हस्तक्षेप करना आपकी आदत सी हो गई है। या तो आप धर्माधीश, गुरु, शिक्षक, धर्म प्रचारक, आध्यात्मिक संत बनकर रहें या फिर राजनीति में ही आकर भाग्य आजमाएं।
दिनानुदिन आपके प्रति भारतीय मानस की अरुचि, आपकी श्रेष्ठता पर संदेह करने लगा है। कुछ भी अनाप – शनाप बोलकर आप अपनी महत्ता क्यों घायल कर रहे हैं, समझ से परे है।
          मान्यवर! आपका आचरण गुरुदेव की प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं है। विनम्रता, सहिष्णुता, संत का सहज लक्षण है, जो शायद आपसे तिरोहित होता हुआ प्रतीत हो रहा है। श्रेष्ठ अपनी श्रेष्ठता का ढोल नहीं पीटते।सादर।

सादर।
पं राजेन्द्र नाथ त्रिपाठी राष्ट्रीय अध्यक्ष

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