सेवा में श्रीमान महामहिम राज्यपाल महोदय उत्तराखंड राज भवन देहरादून 248001
विषय:-राज्य का सबसे भ्रष्टतम विभाग हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण को जनहित में समाप्त करने के संबंध में। महामहिम महोदय विषय कल्याण लेने हेतु जनहित में प्रेषित है जिसमें हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण के भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचार से धन कुबेर बने वहां के कर्मचारी अधिकारियों की मनमानी नीति/धन वसूली नीति पिछले कई वर्षों से गतिमान है ऐसा नहीं है कि इसके संबंध में कोई शिकायत अथवा पत्राचार नहीं हुआ है लगातार होता रहा है परंतु इस राज्य में होता क्या है कि इसके खिलाफ जांच होती है वहीं जांच अधिकारी बन जाता है जिस विभाग के विरुद्ध लिखा जाता है वहीं विभाग अपने विभाग की जांच करता है जिसके परिणाम जैसे आने चाहिए वैसे नहीं आते हैं यानी जांच होती ही नहीं है झूठी मनगढ़ंत रिपोर्ट प्रेषित की जाती है। प्राधिकरण के द्वारा भवन निर्माण में जो नीति और नियमावली लागू की जाती है उसमें नियमावली 1972 का बायोलॉजी अलग है और प्राधिकरण में बैठे हुए अधिकारियों की नियमावली अलग है गंगा किनारे तमाम निर्माण हो गए जबकि 200 मी अथवा 100 मीटर दायरे में निर्माण बंद है हो नहीं सकता मान्य सर्वोच्च न्यायालय कहता है राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल कहता है लेकिन उसके बाद भी निर्माण में कोई शीतलता नहीं आई है क्योंकि प्राधिकरण मी बैठे अधिकारी अपना निजी राजस्व वसूलकर कुछ महीनो तक निर्माण को सेल करते हैं और उसके बाद निर्माण प्रारंभ हो जाता है। महामही महोदय हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण नगर नियोजन के लिए नगर विकास मंत्रालय के अधीन संचालित है लेकिन 1972 से लगातार संचालित विभाग के द्वारा नगर नियोजन की कोई भी नीति विकसित नहीं की गई है केवल अपने राजस्व के लिए काम कर रहे हैं प्राधिकरण में बैठे हुए अधिकारी और अभियंता लोग धन कुबेर बने बैठे हैं हरिद्वार की अगर बात करें तो कम से कम 30000 भवन निर्माता को नोटिस दे रखे हैं जिसे मोटे पैसे वसूल कर वह नोटिस दिए हुए भवन वह भवन जिसे सील किया गया था वह भवन जिसे दोस्तीकरण का आर्डर दिया गया था निजी शुल्क वसूलकर वर्तमान स्थिति में पूर्ण रूप से संचालित है महामही महोदय मेरा अनुरोध तो केवल यही है कि हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण जैसी भ्रष्टाचारी विभाग को सरकार को तत्काल प्रभाव से जनहित में बंद कर देना चाहिए और भवन निर्माण मानचित्र की स्वीकृति नगर निगम के अधीन फिर से कार्य किया जाना चाहिए। दूसरा विषय यह है कि प्राधिकरण के गठन के बाद प्राधिकरण में कार्यरत कर्मचारी उपाध्यक्ष सचिव के साथ-साथ संबंधित इंजीनियर सुपरवाइजर आदि की आई संपत्तियों की जांच उनके परिजनों की आई संपत्ति की जांच कराई जाए तो स्पष्ट मालूम होगा कि इन लोगों के द्वारा कितना पैसा अभी तक अपना निजी राजस्व के रूप में नियमों के दर को दिखाकर अपने लिए कमाया गया है इस विषय की जांच हो जाए तो वास्तविक स्थिति और भ्रष्टाचार के जनक स्पष्ट रूप से बेनकाब हो जाएंगे महामहिम जैसे अनुरोध है कि जनहित में इस अनुरोध को स्वीकार किया जाए ताकि जनता को सरकार द्वारा प्रदत नियम के तहत अपना भवन निर्माण कार्य सम गति के साथ संचालित किया जाए बिना भ्रष्टाचार के भवन निर्माण का कार्य संचालित हो सके धन्यवाद